मैं तो रोज़ देखता हूँ तुम को
क्या तुम भी उस नज़र से देख पाती हो ?
जिस नज़र से मैं देखता हूं
बस पूछना था।
देखते ही तुम को धड़कन कुछ बढ़ सी जाती है।
मेरे करीब से गुजरते वक़्त क्या तुम भी महसूस कर पाती हो?
जो मैं महसूस करता हूं
बस पूछना था।
तुम्हारे आते ही एक हल्की सी मुस्कान उभर आती है चेहरे पर
मैं तो समझ लेता हूं
क्या तुम भी उस मुस्कान का कारण समझ पाती हो?
बस पूछना था।
सीढ़ियों से हर रोज़ तुम्हारे पीछे ही तो चलता हूं।
मगर क्या तुम भी कभी कभी पीछे मुड़ के देखना चाहती हो?
बस पूछना था।
एक ही जगह हर रोज़ मिलते हैं हम
क्या तुम भी मेरी मौजूदगी का एहसास कर पाती हो?
बस पूछना था।
— Devanshu Chaudhary
Reviewed by Nitin Sharma:
प्रस्तुत कविता में कवि अपनी भावनाओं को प्रेमिका के समक्ष रखते हुए उससे सवाल कर रहा है कि जो भावनाएं कवि प्रेयसी के लिए महसूस करता है, क्या वैसा ही प्रेयसी कवि के लिए महसूस करती है….
प्यार के वक्त की भावनाओं को कवि ने उम्दा तरीके से पेश किया है….
कविता भावनाओं को व्यक्त करने में समर्थ है।
और बेहतर लिखने के लिए कवि पाश की कविताओं का सहारा ले सकते हैं।